What a charged up Sunday morning! And this one is in my very own rashtrabhasha!
ना कहीं रुकना है अभी, ना है पीछे जाना,
वक्त का यह खेल है, कभी डूबना कभी उभरना,
पर तैरता रहूँगा मैं सदैव, लहरों से झगड़कर,
हारा नहीं हूँ मैं, अब तक साँस जो नहीं रुकी ।
फीर आयी एक लहर, मुझको अपने अन्दर खीचकर,
पानी के तूफ़ान के बीच , हालत थी बुरी,
गोल गोल घूम रहा था मैं, सोचा भीतर अब और भीतर ,
हारा नहीं हूँ मैं, अब तक साँस जो नही रुकी ।
हाथ पैर हिलाते हुए, पहुँचा तट पर आखीर,
मीठी नर्म मिटटी पअहुंचा पूरे पानी पानी ,
कल फिर होगा एक और संघर्ष , एक और मंजिल, लेकिन,
हारा नहीं हूँ मैं, अब तक साँस जो नहीं रुकी ।
पोस्टस्क्रिप्ट
है यह मेरी पहली कविता, ना हूँ मैं कवि,
ना हूँ लेखक, साधारणता के लिए माफ़ी,
पर लिखता रहूँगा, जब तक मेरे हाथ में कलम नहीं नाचती,
हारा नहीं हूँ मैं, अब तक साँस जो नहीं रुकी ।।
4 comments:
dude its superb..i love the way u've written the postscript also
has the feel of harvanshrai bachan... good style....does not feel amauterish at all...u have the knack of writing so keep it coming........but pep up...life is a struggle only if u say it is.....if u say its a cool calm sea with soft waves and u floating on them...it is !!
yaar hindi-vindi humein ek saal UP mein rehne ke baad bhi samajh mein nahi aati...
But that doesn't take away the awesome feel that your poem exudes. Keep writing man....hopefully a few poems down the line I might start to appreciate them a lil more
Dude, this is amazzzzzzzzzing! Write some more kavitas bhai!
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